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न्यायपालिका में हो सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व – संसदीय समिति की रिपोर्ट

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नई दिल्ली ( एजेंसी)। न्यायपालिका में वर्गों के प्रतिनिधित्व को लेकर देशभर में  समय -समय पर मांग उठती रही है। अब संसद की स्थाई समिति ने न्यायपालिका में सुधार के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत की है। राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय विभाग की स्थायी संसदीय समिति ने सोमवार को संसद के दोनों सदनों में न्यायिक प्रक्रियाएं और उनमें सुधार विषय पर अपनी 133वीं रिपोर्ट पेश की।

समिति ने क्या दिया सुझाव?

रिपोर्ट के पैरा 12 में समिति ने इस बात पर चिंता जताई कि हाल के वर्षों में समाज के वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व में कमी आई है। समिति ने कहा कि न्यायपालिका के प्रति भरोसा बढ़ाने के लिए सभी वर्गों को उचित स्थान देना चाहिए।

समिति ने कहा है कि न्यायपालिका में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC), महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता को बढ़ाया जाना चाहिए। संसदीय समिति ने संसद के दोनों सदनों में न्यायिक प्रक्रियाएं और उनमें सुधार विषय पर अपनी 133वीं रिपोर्ट पेश की।

आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं

सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। पर विभिन्न तबकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व पर विचार किया जाना। इससे न्यायपालिका के प्रति लोगों का भरोसा और ज्यादा बढ़ेगा। इससे न्यायपालिका के प्रति लोगों का भरोसा और ज्यादा बढ़ेगा। नियुक्तियों के लिए सिफारिशें करते समय कलेजियम को इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए।

समाज के वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व में कमी

रिपोर्ट के पैरा 12 में समिति ने इस बात पर चिंता जताई कि हाल के वर्षों में समाज के वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व में कमी आई है। महिलाओं के अलावा एससी, एसटी, ओबीसी का प्रतिनिधित्व कम होने ने उच्च न्यायपालिका देश की सामाजिक विविधता को प्रतिबिम्बित नहीं करती।

-समिति की रिपोर्ट कहती है कि कुछ माह अदालतों के सामूहिक अवकाश के मामले में संवेदनशीलता के साथ विचार होना चाहिए। बड़ी संख्या में मामले लंबित होने कारण अक्सर मांग उठती है कि लंबी छुट्टियां खत्म होनी चाहिए।

-इस दौरान सिर्फ गिनी-चुनी अवकाश अदालतों या पीठों के ही काम करने से वादियों को खासी परेशानी उठानी पड़ती है।

-रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या स्थिर है। शीर्ष कोर्ट ने 2022 में कुल दर्ज नए मामलों की तुलना में -ज्यादा संख्या में मामले निपटाए। लेकिन पहले से लंबित 35,000 मामले समस्या बने हैं।

-रिपोर्ट हाईकोर्ट में लंबित मामलों की संख्या काफी ज्यादा होने पर जरूर चिंता जताती है।

पर्याप्त संख्या में महिलाओं और उम्मीदवारों की सिफारिश

रिपोर्ट के पैरा 16 में, समिति ने यह भी उल्लेख किया है कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सिफारिशें करते समय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के कॉलेजियम दोनों को अल्पसंख्यकों सहित समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों से पर्याप्त संख्या में महिलाओं और उम्मीदवारों की सिफारिश करनी चाहिए। इस प्रावधान का प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जिसे वर्तमान में अंतिम रूप दिया जा रहा है।

नियुक्तियों के लिए सिफारिशें करते समय कॉलेजियम को इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की सामाजिक स्थिति से संबंधित डेटा 2018 से उपलब्ध है। साथ ही पैरा 17 में न्याय विभाग से सभी मौजूदा न्यायाधीशों के संबंध में ऐसे डेटा एकत्र करने के तरीके और साधन खोजने की सिफारिश की गई है। समिति ने रिपोर्ट में कहा, ऐसा करने के लिए यदि आवश्यक हो, तो संबंधित अधिनियमों और न्यायाधीशों के सेवा नियमों में आवश्यक संशोधन किए जा सकते हैं।

यह रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों जैसी देश की उच्च न्यायपालिका से संबंधित है जिसमें समिति ने मुद्दों की जांच की और छह सुधारों का सुझाव दिया जिसमें उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता, सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों की व्यवहार्यता, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के जजों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने की संभावना, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में छुट्टियां, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की अनिवार्य घोषणा और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों द्वारा वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रकाशित करना शामिल है।

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