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‘दिल्ली सेवा बिल’ को राष्ट्रपति की मंजूरी, कानून की अधिसूचना जारी

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-अब दिल्ली सरकार में मुख्य सचिव तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के हंगामेदार मॉनसून सत्र के दौरान पारित चार विधेयकों को मंजूरी दे दी है। डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक पर अब कानून बनने के लिए मुहर लग चुकी है। इनमें से कम से कम दो विधेयक, जो अब कानून बन गए हैं का विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया था।

दिल्ली में सेवा क्षेत्र को उपराज्यपाल के अधीन करने वाले अध्यादेश को कानूनी जामा पहनाने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब यह बिल कानून बन गया है। कानून बनते ही भारत सरकार ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है।

केंद्र सरकार का राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं पर नियंत्रण का कानून आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार से दिल्ली की नौकरशाही पर नियंत्रण को खींच लिया है। इसका विपक्ष के इंडिया गुट ने कड़ा विरोध किया। और जब इसे सदन में मतदान के लिए रखा गया तो विपक्षी दल के सांसद संसद से बाहर चले गए।

दिल्ली सेवा कानून का प्रावधान

-दिल्ली सरकार में अधिकारियों के तबादला और नियुक्ति राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) करेगा। इसके चेयरमैन मुख्यमंत्री हैं और दो अन्य सदस्य मुख्यसचिव और गृह सचिव हैं। यानी मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं, वे अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकेंगे।

-दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए कियी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले में NCCSA नामों के एक पैनल की सिफारिश उपराज्यपाल को करेगा। उपराज्यपाल अनुशंसित नामों के पैनल के आधार पर नियुक्तियां करेंगे।

-अब मुख्य सचिव ये तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत। इसी तरह अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है।

-सतर्कता सचिव अध्यादेश के आने के बाद चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं वे एलजी के प्रति बनाए गए प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हैं।

-अब अगर मुख्यसचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेंगे। इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं।

-दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उन पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार का कंट्रोल खत्म हो गया है, ये शक्तियां एलजी के जरिए केंद्र के पास चली गई हैं।

बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह ने सरकार के प्रस्तावित कानून का बचाव किया था। उन्होंनें कहा था कि ‘यह अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को संदर्भित करता है जो कहता है कि संसद को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से जुड़े किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार है। संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो केंद्र को दिल्ली के लिए कानून बनाने की अनुमति देते हैं।’ इससे पहले केंद्र और अरविंद केजरीवाल सरकार के बीच 8 साल तक चली खींचतान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि चुनी हुई सरकार दिल्ली की बॉस है। विधेयक को लेकर 131 सांसदो ने पक्ष में और 102 सांसदों ने विपक्ष में मतदान किया था।

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