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पी चिदंबरम ने नोटबंदी के खिलाफ दी जोरदार दलीलें, सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर दखल देने को विवश

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नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद बैंकिंग सिस्टम में वापस लौटे पुराने नोटों पर रिजर्व बैंक के आंकड़े जारी होने के बाद विपक्ष सरकार के खिलाफ हमलावर हो गया है। विपक्ष शुरू से ही सरकार के नोटबंदी के कदम की आलोचना करता रहा है और अब आंकड़े जारी होने के बाद उसे सरकार पर हमले का फिर से मौका मिल गया है।  पूर्व वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने अपनी दलीलों से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को नोटबंदी के जिन्न को बोतल से बाहर निकलने पर विवश कर दिया। चिदंबरम की दलीलों के बाद नोटबंदी के खिलाफ ठन्डे बस्ते में पड़ी 58 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। SC ने  कहा कि आने वाली पीढियों के लिए एक कानून तय किया जा सकता है। संविधान पीठ का कर्तव्य है कि वो मुद्दे में उठे सवालों का जवाब दे। 

दरअसल, बेंच शुरू में एसजी तुषार मेहता की इस टिप्पणी को स्वीकार कर याचिकाओं को निपटारा करना चाहती थी कि मामला निष्प्रभावी हो गया है और केवल अकादमिक हित रह गया था लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व वित्त मंत्री और एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि1978 की नोटबंदी एक अलग कानून था। अध्यादेश के बाद एक कानून लाया गया यह अकादमिक नहीं है, यह एक लाइव इश्यू है। हम इसे साबित करेंगे। यह मुद्दा भविष्य में उत्पन्न हो सकता है. इसके बाद पीठ का प्रथम दृष्टया विचार था कि इस मुद्दे को और जांच की जरूरत है। इसके बाद केंद्र और RBI से विस्तृत हलफनामा मांगा गया।  

गौरतलब है कि नोटबंदी की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा है। कोर्ट ने कहा कि क्या सुप्रीम कोर्ट को भविष्य के लिए कानून तय नहीं करना चाहिए? क्या RBI एक्ट के तहत नोटबंदी की जा सकती है? नोटबंदी के लिए अलग कानून की जरूरत है या नहीं। जिस तरह से नोटबंदी को अंजाम दिया गया इस प्रक्रिया के पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है। इससे पहले, पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस नज़ीर ने पूछा- अब इस मामले में कुछ बचा है ?  जस्टिस गवई ने कहा, अगर कुछ नहीं बचा तो आगे क्यों बढ़ना चाहिए?  इस पर  SG ने कहा था कि मुझे लगता है कि कुछ अकादमिक मुद्दों के अलावा कुछ भी नहीं बचा है। क्या अकादमिक मुद्दों पर फैसला करने के लिए पांच जजों को बैठना चाहिए।  

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