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मोदी सरकार ने किया अन्याय, नहीं दिया धर्मेंद्र को सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान

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द्रष्टा डेस्क। 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के नसराली में जन्मे फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र आज निधन हो गया है। उनके हिंदी सिनेमा में दिए गए योगदान को देश कभी नहीं नहीं भूल पायेगा। ‘ही-मैन’ के नाम से पुकारे जाने वाले अभिनेता धर्मेंद्र लोगों के दिलों में हमेशा राज करते रहेंगे।

धर्मेंद्र (धर्म सिंह देओल), जिन्हें हिंदी सिनेमा का ‘ही-मैन’ कहा जाता है, ने 60 वर्षों से अधिक समय में 300 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। उनकी फिल्में जैसे शोले, फूल और पत्थर, चुपके-चुपके और सत्यकाम ने भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयां दीं। ‘शोले’, ‘यादों की बारात’, ‘सीता और गीता’, ‘प्यार ही प्यार’, ‘खामोशी’ और ‘अनुपमा’ जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया।

साल 2012 में धर्मेंद्र को पद्म भूषण

भारत सरकार ने साल 2012 में धर्मेंद्र को पद्म भूषण (भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान) मिला, साथ ही 1997 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के तहत लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड। फिर भी, पद्म विभूषण (दूसरा सर्वोच्च) और दादा साहब फाल्के पुरस्कार (सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान) उन्हें अब तक (नवंबर 2025 तक) नहीं मिला। यह एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जहां प्रशंसक, परिवार और सिनेमा जगत लंबे समय से मांग कर रहा है।

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मोदी सरकार ने किया अन्याय
ये पुरस्कार लोकप्रियता या हिट फिल्मों पर नहीं, बल्कि ‘सांस्कृतिक प्रभाव’ और ‘नवाचार’ पर दिए जाते हैं। धर्मेंद्र की एक्शन-रोमांस वाली छवि को ‘मास अपील’ तो माना गया, लेकिन ‘कलात्मक गहराई’ (जैसे अमिताभ की ‘एंग्री यंग मैन’ या शशि कपूर की बहुमुखी प्रतिभा) में कम आंका गया। X (पूर्व ट्विटर) पर हालिया पोस्ट्स में (#Dharmendra) लोग कह रहे, “मोदी सरकार ने अन्याय किया, जूनियर्स को दिया लेकिन धर्मेंद्र को नहीं।” एक पोस्ट: “100+ हिट्स, 6 दशक, फिर भी अनदेखा।”

क्षेत्रीय पूर्वाग्रह और विविधता नीति
दादा साहब फाल्के में 1969 से 2025 तक 54 विजेता हुए, जिनमें हिंदी सिनेमा के केवल 20-25% हैं। दक्षिण सिनेमा (तमिल, मलयालम, तेलुगु) को प्राथमिकता मिली—जैसे 2023 में मोहनलाल, 2019 में राजिनिकांत। हिंदी के अन्य जैसे शम्मी कपूर, राजेश खन्ना भी वंचित रहे।
पद्म विभूषण में भी: सिनेमा में केवल 10-15% प्राप्तकर्ता हैं, और हिंदी अभिनेताओं में अमिताभ (2015), दिलीप कुमार (1994) जैसे ‘आइकॉनिक’ को मिला। धर्मेंद्र को ‘क्षेत्रीय’ (पंजाबी छवि) माना गया, जबकि दक्षिण/अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाले को प्राथमिकता।

छवि और करियर की धारणा
धर्मेंद्र को ‘एक्शन ही-मैन’ के रूप में टाइपकास्ट किया गया, जबकि पुरस्कार ‘बहुमुखी/कलात्मक’ योगदान को प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने 75+ हिट फिल्में दीं (अमिताभ से ज्यादा), लेकिन ‘सत्यकाम’ जैसी गंभीर भूमिकाओं के बावजूद, समीक्षा में कम सराहना मिली। स्वयं धर्मेंद्र ने 2025 में एक साक्षात्कार में कहा: “37 साल तक हर साल नया सूट सिलवाया अवॉर्ड के लिए, लेकिन सत्यकाम, अनुपमा, फूल और पत्थर के लिए भी नहीं मिला।”

राजनीतिक करियर
2004-09 तक भाजपा सांसद रहे, लेकिन पुरस्कारों में राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप लगा (कुछ मामलों में NDA सरकार ने दक्षिण कलाकारों को दिया)।

अवार्ड के लिए नहीं हुई लॉबिंग
दादा साहब फाल्के में हर साल एक ही—2024 में मिथुन चक्रवर्ती को मिला,  इसी तरह, धर्मेंद्र के समकालीन जैसे विनोद खन्ना (2017) को मिला, लेकिन धर्मेंद्र को नहीं।
पद्म विभूषण- पद्म भूषण के बाद अपग्रेड के लिए 10-15 वर्ष इंतजार, लेकिन सिनेमा में अन्य क्षेत्रों (विज्ञान, खेल) को प्राथमिकता। 2025 में 139 पद्म पुरस्कार घोषित हुए, लेकिन सिनेमा में कोई नया विभूषण नहीं।
नामांकन की कमी- राज्य सरकारें (पंजाब) नामांकन भेज सकती हैं, लेकिन अपर्याप्त लॉबिंग। उदाहरण- केरल सरकार ने मोहनलाल को नामित किया।
सांस्कृतिक शिफ्ट- हाल के वर्षों में OTT/क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा, जिससे पुराने हिंदी सितारे पीछे रह गए।

मांग और विवाद
परिवार की आवाज- पत्नी हेमा मालिनी ने अक्टूबर 2024 में कहा: “दादा साहब फाल्के धर्मेंद्र को मिलना चाहिए था, जो अब तक नहीं मिला।” उन्होंने मिथुन को बधाई दी, लेकिन दर्द व्यक्त किया।
सिनेमा जगत- कंगना रनौत, अनुपम खेर जैसे ने समर्थन किया। 2011 में उन्हें ‘फाल्के रत्ना’ (गैर-सरकारी) मिला, जो आधिकारिक का विकल्प था।

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