लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल चूका है। बीजेपी लगातार दूसरी बार सरकार बना रही है। लेकिन , सिराथू विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर दांव आजमा रहे केशव प्रसाद मौर्य सपा प्रत्याशी पल्लवी पटेल से हार गए हैं। सपा की पल्लवी पटेल ने केशव प्रसाद मौर्य को 7337 वोटों से हरा दिया है। पल्लवी को यहां 105568 वोट मिले हैं, जबकि केशव प्रसाद को 98727 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा है। वहीं तीसरे नंबर पर रहे बसपा के मुनसाब अली को 10034 वोट मिले हैं। बता दें कि पिता को हारता देख कर केशव के बेटे और भाजपा समर्थकों ने वोटिंग को रुकवा दिया था। उनकी ओर से फिर वोटिंग कराने की मांग की गई थी। हालांकि इस पर प्रेक्षक ने फिर से मतगणना कराने से मना कर दिया था।
वोटिंग रोके जाने की खबर पाकर सपा प्रत्याशी पल्लवी पटेल भी मौके पर पहुंची और वोटिंग को लेकर चेताया था। उन्होंने कहा था फिर से वोटिंग हुई तो ठीक नहीं होगा। वोटिंग रुकने से पहले डिप्टी सीएम को अब तक 84961 वोट मिले थे, जबकि सपा की पल्लवी को 85886 वोट मिले थे। 31 राउंड पूरे होते-होते केशव प्रसाद मौर्य सपा प्रत्याशी से काफी पीछे हो गए और चुनाव हार गए।
सिराथू सीट पर समाजवादी पार्टी सिर्फ 2014 के उप चुनाव में जीत दर्ज कर पाई थी। यह उपचुनाव तब हुआ था जब फूलपुर से सांसद चुने जाने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने सिराथू के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। वर्ष 1993 से लेकर वर्ष 2007 तक सिराथू सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। उस दौरान इस सीट से बीएसपी के उम्मीदवार ही जीते थे। वर्ष 2012 में सीट के सामान्य वर्ग का होने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की और पहली बार विधानसभा में पहुंचे।
बताया जाता है कि इस क्षेत्र में करीब 34 फीसदी पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं। कुल मतदाताओं की संख्या 3,80,839 है। इनमें से 19 फीसदी मतदाता सामान्य श्रेणी में आते हैं। क्षेत्र में करीब 33 फीसदी दलित और 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता बताए जाते है।
2012 के विधानसभा चुनाव में प्रयागराज, प्रतापगढ़ और कौशांबी की 22 सीटों में से एकमात्र सिराथू ही ऐसी थी, जहां से भाजपा को जीत मिली थी। इस सीट पर भाजपा की यह पहली जीत थी। इससे पूर्व के दो चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2004 में अतीक अहमद के फूलपुर से सांसद बनने के बाद इलाहाबाद शहर पश्चिम सीट पर हुए उपचुनाव और इसी सीट पर 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में वह पराजित हो गए थे। 2012 के विधानसभा चुनाव के दो साल बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें फूलपुर से प्रत्याशी बनाया। जिसमें उन्होंने रिकॉर्ड तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल कर फूलपुर सीट पर भी पहली बार भाजपा का कमल खिलाया था।