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भारत को अपना रास्ता चुनने के लिए किसी भी अन्य देश की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं – विदेशमंत्री एस. जयशंकर

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रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण जो अनाज की कमी हुई है, उसकी भरपाई में भारत सक्षम है लेकिन WTO इस पर विचार करे।

नई दिल्ली। विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत को अपना रास्ता चुनने के लिए किसी भी अन्य देश की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं है। विदेशमंत्री का यह बयान रूस के यूक्रेन पर हमले को लेकर सख्त रूख अपनाने के लिए पश्चिमी देशों के भारी दबाव के बीच भारत की गुट-निरपेक्ष विदेश नीति की पुष्टि करता है। जयशंकर ने कहा कि भारत किसी भी अन्य देश को खुश करने के लिए उसकी ‘हल्की प्रतिच्छाया’ नहीं बन सकता है।
विदेश मंत्री के हाल के बयान ने बहुत साफ कर दिया है कि भारत की विदेश नीति किस प्रकार से बदल रही है। थिंक टैंक ओआरएफ और विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित रायसीना डायलॉग में बोलते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि जो हैं वैसे ही दुनिया के साथ काम करें, बजाय इसके कि उनके ही कमतर रूप बनें। ये समझना कि हम उनकी दी हुई पहचान से हैं और हमें उनकी मंजूरी चाहिए इसे खत्म करना होगा।

दरअसल, पिछले कुछ वक्त में कई मुद्दों पर पश्चिमी देशों से भारत की राय बिल्कुल अलग रही है। ये बात सबसे ज्यादा खुलकर सामने आई है यूक्रेन के मामले में जहां भारत पर इस बात का लगातार दबाव है कि वो रूस पर लगाए अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों का समर्थन करे। लेकिन भारत के रूस से पुराने रिश्ते हैं और उसकी चीन से बढती करीबी के बीच नई चिंताएं हैं। ऐसे में भारत ने यूएन में रूस के खिलाफ कई प्रस्तावों पर वोट देने के बजाए दूरी बनाना सही समझा है। अपनी घरेलू ज़रूरतों को देखते हुए सस्ते तेल का आयात जारी रखा है और एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम लेने पर भी रोक नहीं लगाई है।

इसके पहले भी धार्मिक आजादी की रिपोर्ट्स हो या विदेशी अखबारों में लेख, सरकार इसे लगातार खारिज करती रही है। विदेश मंत्री का ताज़ा बयान यही बताता है कि अब भारत को इस तरह की राय से फर्क नहीं पड़ता और वो देश हित का अपना पक्ष मज़बूती से रखने को तैयार है।
इसके पहले इसी कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि जब यूरोप यह कहता है कि जो यूक्रेन के साथ हुआ है, उसे खतरे की घंटी माना जाना चाहिए तो मैं याद दिलाना चाहूंगा कि एशिया में बहुत कुछ हुआ पिछले एक दशक में, शायद यूरोप ने नहीं देखा। यहां पर सीमाएं तय नहीं हैं, देश आतंकवाद को बढावा देते हैं, अक्सर प्रायोजित करते हैं और अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों पर दबाव रहा है। जो अफगानिस्तान में हुआ क्या वो सही था? एक पूरी सिविल सोसायटी को मरने के लिए छोड़ दिया गया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि यूरोप की तरह ऐसे हालात में हम कम से कम व्यापार करने की सलाह तो नहीं दे रहे।
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर 2020 में हुई झड़प के बाद चीन की सेना अपनी पुरानी स्थिति पर अब तक वापस नहीं गई है। विदेश मंत्री ने यह भी साफ कर दिया कि भारत रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण जो अनाज की कमी हुई है, उसकी भरपाई में वो सक्षम है लेकिन WTO इस पर विचार करे।

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