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बढ़ते कर्ज की स्थिति पर IMF ने जताई थी चिंता, गरीब देशों को कर्ज राहत देने में चीन का अड़ंगा

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नई दिल्ली। गरीब और विकासशील देशों को कर्ज से राहत देने के भारत, अमेरिका व कुछ दूसरे देशों के प्रस्ताव पर चीन की अड़ंगे की वजह से खास प्रगति नहीं हो पा रही है। पिछले दो महीनों के भीतर जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक से लेकर हाल में वाशिंगटन में समाप्त वित्त मंत्रियों और प्रमुख केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक में चीन का रवैया सहयोगात्मक नहीं रहा है।

गुरुवार को वाशिंगटन में इस बारे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की निदेशक क्रिस्टीना जॉर्जीवा और विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपस की अगुवाई में हुई ग्लोबल सोवरेन डेट राउंडटेबल (GSDR) की बैठक को सकारात्मक तो बताया जा रहा है, लेकिन इसमें कोई ठोस फैसले की सूचना नहीं है।

हालांकि, GSDR ने कुछ ऐसे फैसले किये हैं जिससे कर्ज में डूबे देशों को आगे कुछ फायदा हो सकता है। जैसे यह फैसला किया गया है कि कर्ज की विभीषिका का सही आकलन समय पर करने की कोशिश की जाएगी, ताकि इन देशों को आगाह किया जा सके। जी-20 के अध्यक्ष होने के नाते इस वर्ष भारत विश्व बैंक, आईएमएफ व दूसरी एजेंसियों के साथ मिल कर गरीब व विकासशील देशों पर बढ़ते कर्ज के बोझ का समाधान निकालने की कोशिश कर रहा है।

वर्ष 2020 में ही जी-20 की बैठक में इस बारे में फैसला किया गया था कि बहुत ही गरीब देशों पर कर्ज के बोझ को घटाने को लेकर एक सर्वमान्य फ्रेमवर्क बनाने का फैसला हुआ था। इसमें पारंपरिक तौर पर गरीब देशों को कर्ज देने वाले पश्चिमी देशों के अलावा भारत, सऊदी अरब व चीन भी शामिल हुए थे।

फैसला किया गया था कि सबसे ज्यादा कर्ज में डूबे देशों की समस्याओं का एक-एक करके समाधान निकाला जाएगा, लेकिन इसके बाद कोरोना के बाद जिस तरह से श्रीलंका, पाकिस्तान व कुछ दूसरे देशों में कर्ज की समस्या ने विकराल रूप धारण किया है उसे देखते हुए इसे ज्यादा व्यापक बनाने को लेकर चर्चा हो रही है, लेकिन अभी तक ठोस तौर पर कुछ नहीं हो सकता है।

चीन को एक बड़ा अड़चन बताया जा रहा है। चीन चाहता है कि आईएमएफ व दूसरी वैश्विक ऋण दाता एजेंसियां भी बकाये कर्ज को माफ करने के लिए आग आयें। चीन इस बारे में अमेरिका पर भी आरोप लगाता है कि उसकी मंशा पारदर्शी नहीं है और इस विषय का राजनीतिकरण किया जा रहा है।

बहरहाल, भारत, विश्व बैंक और IMF के बीच हुई GSDR बैठक में मुख्य तौर पर यह बहस किया गया है कि ऋण अदाएगी की नई व्यवस्था को किस तरह से और ज्यादा प्रभावशाली बनाया जा सके। यह फैसला किया गया है कि जिन देशों पर ज्यादा कर्ज है उनके आर्थिक विकास से जुड़े आंकड़ों का अब ज्यादा प्रभावशाली तरीके से आकलन किया जाएगा, ताकि यह समय रहते यह पता लगाया जा सके कि ऋण का खतरा कितना गंभीर है।

आईएमएफ व विश्व बैंक जल्द ही इस बारे में विस्तार से दिशानिर्देश जारी करेंगे। ऋण में फंसे देशों को अतिरिक्त कर्ज किस तरह से दी जाए, इस बारे में भी नया फ्रेमवर्क लाया जाएगा। बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि कम आय वाले देशों पर बकाये कर्ज का नये सिरे से निर्धारण एक बड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा है और इस पर शीघ्रता से फैसला होना चाहिए।

ऋण अदाएगी की यह बैठक तब हुई है जब आईएफएम ने दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट में दुनिया में बढ़ते कर्ज की स्थिति पर भारी चिंता जताई है। दुनिया की सभी देशों के कुल जीडीपी के अनुपात में कुल कर्ज वर्ष 2022 में 92.1 फीसद था जिसके वर्ष 2024 में बढ़ कर 94.6 फीसद हो जाने की संभावना है।

विकसित देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, यूरो जोन के देशों पर उनके जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात बहुत ज्यादा है। भारत सरकार पर कुल कर्ज (GDP के मुकाबले) अभी 83.1 फीसद है जो दो वर्षों बाद 83.7 फीसद होगी। भारत की स्थिति अधिकांश बड़े देशों के मुकाबले बेहतर है। भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी पूर्व में कई बार गरीब व विकासशील देशों पर बढ़ते कर्ज के मुद्दे को उठाया है। इन देशों पर कुल नौ लाख करोड़ डॉलर का कर्ज है।

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