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आप और भाजपा की नूरा-कुश्ती क्या समझ पायेंगे गुजराती मतदाता ?

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रविकांत सिंह ‘द्रष्टा’

राहुल पर निशाना साधने का बहाना खोजने वाले नेताओं को कांग्रेस के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे में दिलचस्पी कम हो गयी थी। लेकिन चुनाव के एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रावण की तरह 10 सिरों वाला बताकर खड़गे ने बीजेपी के बयान बहादुरों को कांग्रेस के मुकाबले में खड़ा कर दिया।

व्यक्ति के विचार और उसकी योजनाएं जब कई आयामों से होकर गुजरती है तब, व्यक्ति राजनीति की बातें समझने लायक बनता है। लोकतांत्रिक देश में मत का प्रयोग करने के आखिरी समय तक मतदाता के मस्तिष्क में विचारों का बवण्डर हलचल मचाता रहता है। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में प्रगति के विचार से अधिक जाति और धर्म के साथ -साथ क्षेत्रीयतावाद का विचार मतदाता के मन को घेरे रखता है। मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया चुनाव के समय बड़ी ही चतुराई से मतदाता के मन मस्तिष्क में उठ रहे विचारों से खेलती है। कल्पनाओं और कुतर्कों से भरे सर्वे, एग्जिट पोल और राजनीतिक बहस आधारित प्रायोजित शो से मीडिया मतदाता के मन को बदलने का प्रयास करती रहती है। अभी तक देखा गया है कि मीडिया इसमें सफल रही है। और मतदाता के मन का मत हारा है।

हिमाचल विधान सभा चुनाव की तरह गुजरात का चुनाव नहीं है। दोनों प्रदेशों के चुनाव में जमीन और आसमान का फर्क है। केन्द्र की सत्ता बीजेपी के हाथ में है। और बीजेपी का हाथ दो सबसे बड़े गुजराती नेता नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के हाथ में है। गुजरात विधान सभा चुनाव जीतकर सत्ता में बने रहना अब उनके राजनीतिक भविष्य की लड़ाई बन चुकी है। दोनों नेता ये चुनाव नहीं बल्कि अपने राजनीतिक अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं।

गुजरात विधान सभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस है। 7 साल से केन्द्र और 27 सालों से कांग्रेस गुजरात में सत्ता से दूर है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब अध्यक्ष नहीं हैं और न ही उनके ऊपर चुनाव जीताने वाले नेतृत्व का बोझ है। वह भारत जोड़ो यात्रा में लगे है। बस एक कर्तव्यनिष्ठ नेता की तरह। भारत जोड़ो यात्रा से वह कांग्रेस के संगठन को मजबूत करना व जनता का भरोसा जीतना चाहते हैं। भाजपा ने विगत वर्षों में राहुल गांधी की जो पप्पू वाली छवि जनता के मन में बना रखी है। उस छवि से राहुल बाहर निकलने में लगे पड़े हैं। अब कांग्रेस की जीत हार पार्टी अध्यक्ष मल्लीकार्जून खड़गे के कंधो पर है।

मीडिया को राहुल गांधी की यादों ने दबोच रखा है। वह अब भी कांग्रेस का मतलब राहुल गांधी का नेतृत्व समझ रही है। भाजपा युवा नेता हार्दिक पटेल गुजरात चुनाव में राहुल गांधी की कमी को लेकर बड़े निराश हैं। उन्हें मल्लिाकार्जून खड़गे से लड़ने में लाभ नहीं दिख रहा है तो वे चुनावी मैंदान में राहुल गांधी की तलाश कर रहे हैं।

एक जन आन्दोलन से पैदा हुई आम आदमी पार्टी(आप) भी दूसरी बार गुजरात विधान सभा चुनाव में है। अपने पहले ही चुनाव में दिल्ली की सत्ता हासिल करने का रिकार्ड बनाने वाली आप 2014 से संसदीय चुनाव व विधान सभा चुनाव में लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। चुनावों में उनके कई उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाती है तो, कइयों की जीत चौंका देती है। आम आदमी पार्टी चुनाव बड़ी ही कुशलता और आक्रामकता से लड़ती है। आप के मुखिया अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय, राघव चढ्ढा और  पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंतमान चुनावी लड़ाई लड़ने वाले आक्रामक राजनीतिक खिलाड़ी हैं।

चौथी पार्टी है असुद्दीन ओवैसी की एआईएमएम। हिन्दु और मुस्लिम के नाम पर अपना मत देने वाले मतदाताओं के लिए यह पार्टी बहुत महत्व रखती है। खासकर गुजरात विधान सभा चुनाव में तो, इसका महत्व बढ़ जाता है। मतदाताओं के मन में चल रहे जिस बवंडर का द्रष्टा ने जिक्र किया है उस बवंडर के लिए उत्प्रेरक हैं इस पार्टी के मुखिया असुद्दीन ओवैसी। इनके बयान मुस्लिम मतदाताओं के मन में चल रहे विचारों के बवंडर को भी तहस-नहस करने में सक्षम है।

गुजरात के चुनावी मैदान में हो रही राजनीति को ‘द्रष्टा’ ने आप और भाजपा की नूरा कुश्ती क्यों कहा? आकलन आधारित चुनावी आकड़ों का मतलब ही झूठ से है। इसलिए ‘द्रष्टा’ चुनावी सर्वे और एग्जिट पोल जैसे प्रायोजित बातों और कार्यक्रमों को केवल मनोरंजन का विषय मानता है। लोकतंत्र के इस महापर्व में झूठी बातें करना महापाप और जनहित विरोधी है। राजनीतिक समझ के दायरे को बढ़ाना और जनहित में मत बनाना द्रष्टा का कर्तव्य है।

भारतीय जनता पार्टी 27 सालों से लगातार गुजरात की सत्ता में है और कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी। 2017 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। 2017 के इस चुनाव में दिवंगत हो चुके वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। 182 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को 99 सीटों पर जीत मिली थी जबकि कांग्रेस ने 77 सीटें हासिल की थी।

इस बार के चुनाव में बीजेपी बखुबी जानती है कि उसका मुकाबला केवल और केवल कांग्रेस पार्टी से है न कि अन्य आम आदमी पार्टी से। फिर भी मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए बीजेपी के रणनीतिकार मीडिया में आप पार्टी से मुख्य प्रतिद्वंदी की तरह जुबानी जंग लड़ रहे हैं। ताकि मतदाताओं को लगे कि आप की लड़ाई बीजेपी से है।

बीजेपी कैसे ले रही है आप से काम ?

सत्ता हासिल करने के लिए मजबूत राजनीतिक प्रतिद्वंदी की आवश्यकता होती है। कांग्रेस से राहुल गॉंधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद बीजेपी ने भी अपना प्रमुख प्रतिद्वंदी खो दिया। यहां राहुल ने राजनीतिक बाजी मार ली। अब बीजेपी को मजबूत प्रतिद्वंदी की आवश्यकता थी। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। लेकिन कामकाज को लेकर दिल्ली सरकार में उपराज्यपाल की मजबूत दखल है। आप के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन पर बीजेपी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।

राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मीडिया को बड़ी ही चालाकी से उलझाकर बीजेपी ने आप को मुख्यप्रतिद्वंदी बना लिया। आम आदमी पार्टी का हाल ही में एक बयान आया है जिसमें कहा गया है कि शराब नीति घोटाले की जांच कर रही ईडी ने की चार्ज सीट में मनीष सिसोदिया का नाम नही है। जिस मनीष सिसोदिया को लेकर बीजेपी और मीडिया ने हंगामा खड़ा किया था। और बीजेपी ने मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के दावे किये थे। अब गुजरात चुनाव के समय वही बीजेपी और मीडिया ने अपना सुर बदल लिया है।

द्रष्टा इसे एक प्रायोजित लड़ाई के रुप में देख रहा है। गुजरात चुनाव 2017 में बीजेपी को 49.05 % वोट मिला था। इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में 41.44% वोट मिला था। जबकि गुजरात में 1.8 % मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को 9 प्रतिशत मत कम मिले थे। अब गुजरात में वोटर्स की संख्या 4.91 करोड़ है जिसमें से नये वोटर 11.62 लाख हैं।

गुजरात के जातीय समीकरण की बात की जाए तो इसमें सबसे अधिक कोली समुदाय के वोटर्स की संख्या है, इसके बाद पाटीदार समुदाय की गुजरात चुनाव में बहुत अहमियत मानी जाती है। गुजरात में कोली  24%, पाटीदार  15%, मुस्लिम  10%, एसटी 15%, एससी 7%, ब्राह्मण 4%, राजपूत 5%, वैश्य 3% और अन्य  17% वोटर्स हैं। इसके अलावा गुजरात विधानसभा के सीटों के गणित की बात करें तो प्रदेश की कुल 182 सीटों में सामान्य सीट 142, एससी सीट 13 और एसटी के लिए सीटों की संख्या 27 है। राज्य में अहमदाबाद ,पंचमहल ,खेड़ा, आनंद, भरूच, नवसारी साबरकांठा ,जामनगर और जूनागढ़ के इलाकों में मुस्लिम मतदाताओं का खासा प्रभाव माना जाता है।

गुजरात में करीब 10 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। इनका एकतरफा वोट राजनीतिक समीकरण साधे रणनीतिकारों के लिए चुनौती बना रहता है। मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के कैडर वोट हैं। इस बार कांग्रेस ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। असुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने अपने 14 सीटों में 12 सीटों पर मुस्लिम उम्म्ीदवार उतारे हैं। और आम आदमी पार्टी के भी 2 मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी इन्हीं 10 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं को बांटने में लगी है। कोली समाज बीजेपी से नाराज है। छोटे मध्यम व्यापारी भी अब बीजेपी को नापसन्द कर रहे हैं।

सब मिलाकर 2017 की तुलना में बीजेपी को 2022 में 12 से 15 प्रतिशत जनाधार घटता हुआ दिखाई दे रहा है। गुजरात की सत्ता में 27 सालों से बीजेपी है, इसलिए मतदाताओं का कांग्रेस से नाराज होने का कोई कारण नहीं हैं। बीजपी के नेता इस स्थिति को समझ रहे हैं। इसलिए, बीजेपी ने मीडिया में अपना प्रतिद्वंदी कांग्रेस को न बनाकर आम आदमी पार्टी को बना रखा है। जो इन 12 से 15 प्रतिशत मतदाताओं को अपने आक्रामक प्रचार से बिखेर सकती है। और मीडिया भी इस चुनाव को दिलचस्प बनाये रखने के लिए बीजेपी और आप की नूरा कुश्ती को त्रिकोणीय मुकाबला बता रही है।

राहुल पर निशाना साधने का बहाना खोजने वाले नेताओं को कांग्रेस के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे में दिलचस्पी कम हो गयी थी। लेकिन चुनाव के एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रावण की तरह 10 सिरों वाला बताकर खड़गे ने बीजेपी के बयान बहादुरों को कांग्रेस के मुकाबले में खड़ा कर दिया।

2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को 9 प्रतिशत मत कम मिले थे। यदि गुजरात के मतदाताओं ने इस नूरा-कुश्ती को समझ लिया और जमकर मतदान किया तो, कांग्रेस चुनाव में बीजेपी को हरा सकती है। यदि मतदाता बीजेपी और मीडिया के त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गये तो बीजेपी 100 सीटों का आंकड़ा पार कर सकती है।

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