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बोलने की आज़ादी घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता – मद्रास HC

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-सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है, जिसमें राष्ट्र, राजा, अपने माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य और गरीबों की देखभाल करना शामिल है।

चेन्नई, एजेंसी। DMK मंत्री उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों पर राजनीतिक विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। सनातन धर्म पर चल रही बहस के बीच मद्रास हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है, जिसमें राष्ट्र, राजा, अपने माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य और गरीबों की देखभाल करना शामिल है। मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति एन शेषशायी ने सनातन धर्म को लेकर हो रही जोरदार बहस और चारों तरफ मचे शोर-शराबे पर चिंता व्यक्त की।

न्यायमूर्ति एन. शेषशायी ने 15 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि अदालत सनातन धर्म के पक्ष और विपक्ष में बहुत मुखर और समय-समय पर होने वाली शोर-शराबे वाली बहसों के प्रति सचेत है और अदालत चारों ओर जो कुछ भी हो रहा है, उस पर वास्तविक चिंता के साथ विचार करने से खुद को रोक नहीं सकती है।

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि एक विचार ने जोर पकड़ रहा है कि सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने के बारे में है, एक ऐसी धारणा जिसे उन्होंने दृढ़ता से खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति शेषशायी ने कहा, “समान नागरिक अधिकार वाले देश में अस्पृश्यता बर्दाश्त नहीं की जा सकती।” “भले ही इसे ‘सनातन धर्म’ के सिद्धांतों के भीतर कहीं न कहीं अनुमति के रूप में देखा जाता है, फिर भी इसके लिए कोई जगह नहीं हो सकती है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 17 में घोषित किया गया है कि अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है।” कोर्ट ने कहा, यह मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

इसका मतलब यह नहीं कि नफरत भरे भाषण दिए जाएं

न्यायमूर्ति ने आगे इस बात पर जोर दिया कि बोलने की आज़ादी एक मौलिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि नफरत भरे भाषण दिए जाएं, खासकर जब यह किसी धर्म से जुड़ा हो। उन्होंनें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत पर बल दिया कि इस तरह के भाषण से किसी को चोट नहीं पहुंचे। उन्होंने कहा, “हर धर्म आस्था पर टिका होता है और आस्था अपनी प्रकृति में तर्कहीनता को समायोजित करती है।” “इसलिए, जब धर्म से जुड़े मामलों में बोलने की आज़ादी का प्रयोग किया जाता है, तो किसी के लिए यह सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है कि इससे किसी को भी चोट नहीं पहुंचे। दूसरे शब्दों में, बोलने की आज़ादी का मतलब घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता है।”

अदालत ने यह भी कहा कि जब धर्म से संबंधित मामलों में स्वतंत्र भाषण का प्रयोग किया जाता है, तो किसी के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कोई भी परेशान न हो और स्वतंत्र भाषण घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता है। इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 51ए(ए) के तहत, संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है… इसलिए, सनातन धर्म के भीतर या बाहर, छुआछूत अब संवैधानिक नहीं हो सकती है। हालाँकि दुख की बात है कि यह अभी भी है।

समान व्यवहार करने पर जोर

अदालत ने याचिकाकर्ता एलंगोवन की ओर से दलीलों का उल्लेख किया और कहा कि उन्होंने कहा है कि कहीं भी सनातन धर्म न तो छुआछूत को मंजूरी देता है या बढ़ावा देता है और यह केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों पर सभी के साथ समान व्यवहार करने पर जोर देता है। अदालत ने कहा, जैसे-जैसे धार्मिक प्रथाएं समय के साथ आगे बढ़ती हैं, कुछ बुरी प्रथाएं अनजाने में ही इसमें शामिल हो सकती हैं। वे खरपतवार हैं जिन्हें हटाना आवश्यक है। लेकिन फसल क्यों काटी जाए?’ – यह संक्षेप में विद्वान वकील की दलीलों का सार है।

अदालत एक स्थानीय सरकारी कॉलेज द्वारा जारी एक परिपत्र को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें छात्राओं से तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके संस्थापक सीएन अन्नादुरई की जयंती पर ‘सनाधना का विरोध’ विषय पर अपने विचार साझा करने को कहा गया था। अदालत ने यह देखते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि कॉलेज द्वारा परिपत्र पहले ही वापस ले लिया गया था।

अदालत ने कहा, यह अदालत सनातन धर्म के समर्थक और विरोधी पर बहुत मुखर और समय-समय पर शोर-शराबे वाली बहसों के प्रति सचेत है। इसने मोटे तौर पर सनातन धर्म को ‘शाश्वत कर्तव्यों’ के एक समूह के रूप में समझा है और इसे किसी एक विशिष्ट साहित्य से नहीं खोजा जा सकता है, बल्कि इसे कई स्रोतों से इकट्ठा किया जाना है, जो या तो हिंदू धर्म से संबंधित हैं, या जो हिंदू तरीके का अभ्यास करते हैं।

अदालत ने कहा कि यह प्रशंसनीय होगा, अगर फ्री भाषण निष्पक्ष और स्वस्थ सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करता है और समाज को आगे बढ़ने में मदद करता है। इन दिनों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग किस प्रकार देखा जाता है? यदि सोशल मीडिया के माध्यम से किए गए फ्री स्पीच को आधार माना जाए, तो कोई भी व्यक्ति जिसका विज्ञान या रॉकेट या अंतरिक्ष से बहुत कम लेना-देना है, वह रॉकेट विज्ञान पर व्याख्यान दे सकता है।

अदालत की यह टिप्पणी तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म के खिलाफ की गई हालिया टिप्पणियों को लेकर आई है।  इस बयान के बाद मंत्री को भारी विरोध का सामना करना पड़ा , उन्होंने सनातन धर्म की तुलना “डेंगू और मलेरिया” जैसी बीमारियों से करके राजनीतिक हलचल मचा दी है।

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