नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (AAP) ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वंचित जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए योजनाओं को “मुफ्त उपहार” के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है। मामले को “गंभीर” बताते हुए, याचिकाकर्ता एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि चुनाव आयोग को राज्य और राष्ट्रीय राजनीतिक दल को ऐसी चीजें देने से रोकना चाहिए। “मुफ्तखोरी” का वादा कर वोट मांग रहे हैं।
राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सुविधाएं देने के वादे पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने कहा कि गरीबी के दलदल में फंसे इंसान के लिए मुफ्त सुविधाएं और चीजें देने वाली स्कीमें महत्वपूर्ण हैं। सवाल यह है कि इस बात का फैसला कौन लेगा कि क्या चीज मुफ्तखोरी के दायरे में आती है और किसे जनकल्याण माना जाएगा ? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम चुनाव आयोग को इस मामले में अतिरिक्त शक्ति नहीं दे सकते। अदालत ने कल भी इस मामले पर सुनवाई करने की बात कही है।
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि आयोग को एक पार्टी को राज्य या राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता देने के लिए अतिरिक्त शर्तें जोड़नी चाहिए। हस्तक्षेप आवेदन में, पार्टी, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और पंजाब राज्य पर शासन कर रही है, ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने संबंधों का खुलासा किए बिना याचिका दायर की है और उद्धृत किया है। अतीत में तुच्छ जनहित याचिका दायर करने के लिए अदालत ने उपाध्याय की खिंचाई की।
अदालत ने कहा कि मुफ्त उपहार एक अहम मुद्दा है और इस पर बहस किए जाने की जरूरत है। CJI एनवी रमना ने कहा, ‘मान लीजिए कि अगर केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाती है जिसके तहत राज्यों को मुफ्त उपहार देने पर रोक लगा दी जाती है, तो क्या हम यह कह सकते हैं कि ऐसा कानून न्यायिक जांच के लिए नहीं आएगा। ऐसे में हम देश के कल्याण के लिए इस मामले को सुन रहे हैं।’
SC में इस मामले को लेकर दायर अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर सुनवाई हुई, जिसमें चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वायदा करने वाली राजनीतिक पार्टियो की मान्यता रदद् करने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट के पास आदेश जारी करने की शक्ति है, लेकिन कल को किसी योजना के कल्याणकारी होने पर अदालत में कोई आता है कि यह सही है, ऐसे में यह बहस खड़ी हो जाएगी कि आखिर न्यायपालिका को क्यों इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि हम यह फैसला करेंगे कि मुफ्त की सौगात क्या है। अदालत ने कहा कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुंच, शिक्षा तक पहुंच को मुफ्त सौगात माना जा सकता है। हमें यह परिभाषित करने की आवश्यकता है कि एक मुफ्त सौगात क्या है। क्या हम किसानों को मुफ्त में खाद, बच्चों को मुफ्त शिक्षा के वादे को मुफ्त सौगात कह सकते हैं। सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका क्या है, इसे देखना होगा।
AAP ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता “एक विशेष राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक छोटे से छिपे हुए प्रयास को छिपाने के लिए जनहित याचिका का उपयोग कर रहा है। आप का कहना है कि याचिकाकर्ता केवल मुफ्त उपहारों के वादे को रोकने की कोशिश कर रहा है, न कि ऐसे वादों की वास्तविक पूर्ति। और इसलिए उनकी चिंता वास्तव में राजकोषीय बोझ के बारे में नहीं है और यह याचिका एक “राजनीतिक हित याचिका” है।
याचिका के मैरिट के आधार पर आप ने कहा कि संविधान के राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों ने इस विचार को मजबूत किया कि राज्य को एक समान सामाजिक व्यवस्था लाने के लिए एक समाजवादी और कल्याणकारी कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहिए, जहां हर व्यक्ति को बुनियादी सुविधाओं तक समान पहुंच हो।
SC ने बीते बुधवार को कहा था कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता। साथ ही ‘फ्रीबीज’ (मुफ्त सौगात) शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा। कोर्ट ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख किया और कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नहीं चाह रहे, बल्कि वे अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते हैं।