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शिक्षित लोग ही बेहतर निर्णय लेने वाले, यह कुलीन समझ खारिज करने की जरूरत- CJI डीवाई चंद्रचूड़

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नई दिल्ली (पीटीआई)। लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ‘कुलीन समझ’ के हर प्रकार को खारिज किया जाना चाहिए। यह बात देश के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कही है। उन्होंने शुक्रवार को कहा है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की इस ‘कुलीन समझ’ के हर प्रकार को खारिज किया जाना चाहिए कि शिक्षित लोग बेहतर निर्णय लेने वाले होते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह कुलीन अवधारणा कि केवल शिक्षित या कुछ व्यक्तियों को ही वोट देने का अधिकार होना चाहिए, लोकतंत्र के प्रति अवमानना ​​​​और अविश्वास को दर्शाता है। 

आगे प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की अवधारण भागीदारी लोकतंत्र और वैयक्तिकता के विचार से जुड़ी हुई हैं। आठवें डा. एलएम सिंघवी मेमोरियल लेक्चर में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की अवधारणा सहभागी लोकतंत्र और व्यक्तियों के विचार से जुड़ी हुई है जिन्हें समाज ने अशिक्षित होने के नाते तिरस्कृत किया है, लेकिन उन्होंने जबर्दस्त राजनीतिक कौशल और स्थानीय समस्याओं के प्रति जागरूकता दिखाई है, जिसे शिक्षित भी नहीं समझ सकते। वह यहां आयोजित डॉ. एल. एम. सिंघवी स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे जिसका विषय था, ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार: भारत के राजनीतिक परिवर्तन का सामाजिक परिवर्तन के रूप में रूपांतरण। ‘

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की शुरुआत ऐसे समय में एक क्रांतिकारी काम था जब ‘परिपक्व’ पश्चिमी लोकतंत्रों में ऐसा अधिकार महिलाओं, अश्वेत लोगों और श्रमिक वर्ग को दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस अर्थ में हमारा संविधान एक नारीवादी दस्तावेज होने के साथ-साथ एक समतावादी सामाजिक रूप से परिवर्तनकारी दस्तावेज भी था। यह औपनिवेशिक और पूर्व-औपनिवेशिक विरासत से एक विराम और संविधान द्वारा अपनाया गया सबसे साहसिक कदम था जो वास्तव में भारतीय सोच का उत्पाद था।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पहली मतदाता सूची को तैयार करना एक अहम कार्य था, क्योंकि ज्यादातर (86 फीसदी) आबादी अशिक्षित थी और नया भारतीय गणराज्य विभाजन, युद्ध और अकाल की विभीषिका से जूझ रहा था। कार्यक्रम में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम को उपराष्ट्रपति और सीजेआइ के अलावा राज्यसभा सदस्य व वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रो. सी. राजकुमार ने भी संबोधित किया।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने आज के समय में कई बार केवल एक मतदाता के लिए मतदान केंद्र स्थापित किये हैं। उन्होंने कहा कि प्रवासी श्रमिकों की पीड़ा पर भी विचार करना चाहिए जो अक्सर अपने चुनाव क्षेत्र में प्रभावी रूप से मतदान करने में सक्षम नहीं होते, क्योंकि उन्हें रोजी-रोजी के लिए अपना गृह नगर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ता है।

इस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का लागू किया जाना एक समय क्रांतिकारी कृत्य था जब कथित रूप से ‘परिपक्व’ पश्चिमी लोकतंत्र में यह अधिकार महिलाओं, गैर श्वेत लोगों और श्रमिक वर्ग को दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस अर्थ में हमार संविधान एक नारीवादी दस्तावेज था और यह एक समतावादी सामाजिक रूप से परिवर्तनकारी दस्तावेज भी था। उन्होंने कहा कि यह आपनिवेशिक और पूर्व औपनिवेशिक विरासत से अलग संविधान में अपनाया गया एक साहसिक कदम था जो सही मायने में भारतीय परिकल्पना का उत्पाद था। 

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