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Coldrif Cough Syrup : दवाओं की टेस्टिंग में भारी कमी से मर गए अबोध बच्चे

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द्रष्टा डेस्क /नई दिल्ली। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक को दरकिनार कर भारत के भविष्य को मिटाने की साज़िश की परतें खुल रही हैं। दवाओं की टेस्टिंग में भारी कमी से मर रहे हैं अबोध बच्चे। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कोल्ड्रिफ कफ सीरप के सेवन से कई बच्चों की जान गई है। इस मामले ने लोगों को दहशत में डाल दिया है। अब इस मामले में जांच शुरू हो गई है। मध्य प्रदेश के साथ कई राज्यों में इस दवा पर बैन लगा दिया गया है।

इन सब के बीच दवाओं की टेस्टिंग को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। दरअसल, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने पिछले साल की तमिलनाडु में दवा टेस्टिंग में भारी कमी की ओर इशारा किया था। रिपोर्ट में डॉक्टरों (21-50% कमी), नर्सों (21% कमी) और पैरामेडिकल स्टाफ (38-96% कमी) की कमी को प्रमुख समस्या बताया गया है। CAG ने तत्काल भर्ती और प्रशिक्षण पर जोर दिया है। अब कोल्ड्रिफ कफ सीरप से हुई नौनिहालों की मौत के बाद इस खुलासे ने लोगों के कान खड़े कर दिए हैं।

2024 की CAG रिपोर्ट ?

कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट नंबर 5 (2024) तमिलनाडु की सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर केंद्रित है। CAG की रिपोर्ट में औषधि निरीक्षण और नमूने उठाने के लक्ष्यों को प्राप्त करने में कमियों को दर्शाया था। यह रिपोर्ट 10 दिसंबर 2024 को तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्तुत की गई, जो 2016-22 की अवधि को कवर करती है।

रिपोर्ट का उद्देश्य स्वास्थ्य फंडिंग की पर्याप्तता, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और प्रबंधन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना था। इसमें स्वास्थ्य विभाग (DHS), मेडिकल एजुकेशन (DME) और आयुष (AYUSH) को शामिल किया गया। मुख्य निष्कर्ष स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करते हैं, जैसे दवाओं की कमी, स्टाफिंग की कमी और नियामक चूकें, जो हाल के कफ सिरप मौतों (जैसे मध्य प्रदेश में 23 बच्चों की मौत) से जुड़ी हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में तमिलनाडु में 1,00,800 जांच का लक्ष्य रखा गया था; हालांकि, केवल 66,331 निरीक्षण ही किए जा सके थे। जिसका सीधा मतलब है कि टारगेट से 34 प्रतिशत कम जांच हो पाई थी। वहीं, करीब तीन साल बाद 2020-21 में दवाइयों की जांच के लिए जो टारगेट रखा गया उसमें 38 प्रतिशत की कमी देखने को मिली थी।

इस अवधि के दौरान, 1,00,800 निरीक्षण किए जाने थे, लेकिन केवल 62,358 निरीक्षण ही किए गए। हैरान करने वाली बात है कि 2019-20 के दौरान सबसे ज्यादा 40% की कमी दर्ज की गई। वहीं, 2020-21 में यह कमी 54% दर्ज की गई।

1-अवसंरचना की कमी (Infrastructure Shortages )

-HCs (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) और PHCs (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) में बुनियादी सुविधाओं की कमी
– रोगी वेटिंग स्पेस, रजिस्ट्रेशन काउंटर, पीने का पानी और शौचालयों की कमी।
-अस्पतालों में बेड्स और OT (Operation Theatres) की कमी; उदाहरण: तमिलनाडु मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन (TNMSC) के तहत कई -अस्पतालों में बुनियादी उपकरण (जैसे X-रे मशीनें) कार्यरत नहीं।
-नई निर्माण/अपग्रेडेशन में देरी: 2021-22 में आवंटित फंड का केवल 30-40% उपयोग।
-दिल्ली के समान,तमिलनाडु के जिलों में SCs (उप-केंद्रों) में 50% से अधिक की कमी।

2. मानव संसाधन की कमी (Human Resources Shortages)

-स्टाफिंग में गंभीर कमी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित करती है।डेटा पॉइंट्स:डॉक्टरों में 21-50% कमी, नर्सों में 21%, पैरामेडिकल स्टाफ में 38-96% कमी।
-ASHAs (Accredited Social Health Activists) की कमी, जो ग्रामीण सेवा वितरण प्रभावित करती है।
-तमिलनाडु मेडिकल सर्विस कारपोरेशन में गुणवत्ता कंट्रोल स्टाफ की कमी, जिससे दवा जांच में देरी।

3. दवा प्रबंधन की समस्याएं (Drug Management Issues) 

रिपोर्ट में दवा नियंत्रण और गुणवत्ता पर गंभीर चिंताएं व्यक्त की गई हैं, जो हाल के कफ सिरप मामलों से जुड़ी हैं।
-तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट के निरीक्षण 34-40% कम; सैंपल लिफ्टिंग 45-54% कम।
-तमिलनाडु मेडिकल सर्विस कारपोरेशन में एक्सपायर्ड दवाओं की समस्या; क्वालिटी कंट्रोल में चूकें।
-आवश्यक दवाओं की सप्लाई में 14-63% कमी; कोविड के दौरान अतिरिक्त भुगतान (₹6.97 करोड़ मृतक रोगियों को)।
-केंद्रीय अधिकारियों ने 6 वर्षों में तमिलनाडु में दवा निरीक्षण नहीं किया।

इसी कारण नियामक में DEG (डायइथाइलीन ग्लाइकॉल) जैसी विषाक्त सामग्री की जांच में कमी पाई गयी। और स्तर 46-48% (सीमा 0.1% से अधिक) हो गया।इस कारण Sresan Pharmaceuticals जैसे मामलों में निरीक्षण की कमी से मौतें हुईं।

4. वित्तीय अनियमितताएं (Financial Irregularities)
फंड उपयोग और खरीद में गंभीर लापरवाही पाई गई।
-राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत फंड का केवल 30% उपयोग; 2021-22 में ₹500 करोड़ का अप्रयुक्त फंड।
-दवा खरीद में अतिरिक्त भुगतान; TNMSC में ₹100 करोड़ से अधिक की अनियमितताएं।
-कोविड फंड में गलत आवंटन (₹6.97 करोड़ मृतकों को भुगतान)।

CAG की सिफारिशें (Recommendations)

अवसंरचना- IPHS मानकों के अनुरूप CHCs/PHCs का तत्काल निर्माण; बेड्स और OT की उपलब्धता बढ़ाएं।
मानव संसाधन- भर्ती प्रक्रिया तेज करें; 50% कमी को 2 वर्षों में पूरा करें; ASHAs का प्रशिक्षण बढ़ाएं।
दवा प्रबंधन- निरीक्षण लक्ष्य 100% करें; सैंपल लिफ्टिंग में सुधार; केंद्रीय सहयोग बढ़ाएं। तमिलनाडु मेडिकल सर्विस कारपोरेशन में गुणवत्ता नियंत्रण मजबूत करें।
वित्तीय प्रबंधन- फंड उपयोग 90% तक बढ़ाएं; वार्षिक ऑडिट अनिवार्य; मृतकों को भुगतान रोकें।
सामान्य- डिजिटल निगरानी (e-Hospital) लागू करें, सेवा वेटिंग कम करें,कोविड जैसी योजनाओं में पारदर्शिता।

औषधि निरीक्षण बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया
बता दें कि दवाएं जहां बनती हैं, उस दौरान इस इसकी टेस्टिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और मिलावट को रोकना है। बता दें कि ये जांच औषधि निरीक्षकों द्वारा की जाती है। वहीं, उनकी मंजूरी के बाद ही खुदरा दुकानों और क्लीनिकों तक दवाएं पहुंचती हैं। केंद्रीय अधिकारियों ने 6 वर्षों में तमिलनाडु में दवा निरीक्षण नहीं किया। इसी कारण नियामक में DEG (डायइथाइलीन ग्लाइकॉल) जैसी विषाक्त सामग्री की जांच में कमी पाई गयी। और स्तर 46-48% (सीमा 0.1% से अधिक) हो गया।इस कारण Sresan Pharmaceuticals जैसे मामलों में निरीक्षण की कमी से मौतें हुईं।

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