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बैंक फ्रॉड, टैक्स चोरी, हवाला के आरोपियों की इज़्ज़त बचाने में जुटी केंद्र सरकार

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-एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि आर्थिक अपराध के मामले में हिरासत में लिए गए लोगों को हथकड़ी नहीं पहनाई जानी चाहिए।

-भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को लोकसभा में किया गया है पेश

नई दिल्ली। बैंक फ्रॉड, फर्जी चेक देकर खरीदारी करने, टैक्स चोरी, हवाला के जरिये रुपये कमाने वाले आरोपियों को मोदी सरकार राहत देने जा रही है। एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि आर्थिक अपराध के मामले में हिरासत में लिए गए लोगों को हथकड़ी नहीं पहनाई जानी चाहिए। साथ ही उन्हें हत्या और दुष्कर्म जैसे घृणित मामलों के अपराधियों के साथ भी नहीं रखा जाना चाहिए।

किसको नहीं पहनाई जानी चाहिए हथकड़ी?

भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय की एक स्थायी समिति ने सोमवार को बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS-2023) के प्रस्तावित विधेयक की धारा 43(3) में हथकड़ी के इस्तेमाल के लिए कहा गया है, जबकि हथकड़ी लगाने का प्रविधान घृणित अपराधों में पकड़े गए लोगों के लिए होता है ताकि वह पुलिस की गिरफ्त से भाग न जाएं। इस नियम के तहत गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की सुरक्षा को ध्यान में रख के भी यह किया जाता है।

समिति ने धारा 43(3) से ‘आर्थिक अपराध’ शब्द हटाने को कहा

समिति का विचार है कि आर्थिक अपराधियों को इस श्रेणी में शामिल नहीं करना चाहिए। समिति ने यह विरोध ‘आर्थिक अपराध की श्रेणी’ में रख कर किया है। इसलिए समिति सिफारिश करती है कि धारा 43(3) से ‘आर्थिक अपराधों’ शब्द को हटा दिया जाए।

स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में क्या कहा?

स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में यह भी कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के मुद्दे पर आरोपितों को गिरफ्तारी के बाद पहले 15 दिन से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए।BNSS की धारा 187(2) के तहत कुल 15 दिन की पुलिस हिरासत होनी चाहिए। 15 दिन की हिरासत एक साथ भी दी जा सकती है और अलग समय पर भी दी जा सकती है। इसी मौजूदा व्यवस्था में 60 या 90 दिनों तक का नहीं होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि विगत 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) विधेयक को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों के साथ पेश गया था। उन प्रस्तावित कानूनों के जरिये सीपीसी, 1898, भारतीय दंड संहिता-1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदला गया है।

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