- ढेलेदार त्वचा रोग (एलएसडी) एक संक्रामक वायरल बीमारी है जो मवेशियों को प्रभावित करती है और बुखार, त्वचा पर गांठ का कारण बनती है और इससे मृत्यु भी हो सकती है।
- ढेलेदार त्वचा रोग दूषित भोजन और पानी के माध्यम से फैलता है
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा कि देश भर में जुलाई में ढेलेदार त्वचा रोग या लंपी वायरस (Lumpy Virus)के फैलने के बाद से अब तक 67,000 से अधिक मवेशियों की मौत हो गई है। एक बयान में कहा गया है कि आठ से अधिक राज्यों में बीमारी के अधिकांश मामले वाले क्षेत्रों में मवेशियों का वैक्सीनेशन करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं।
महाराष्ट्र के पशुपालन विभाग ने मंगलवार को कहा कि राज्य में लंपी वायरस के कारण 43 मवेशियों की मौत हो गई है। विभाग ने बताया कि वायरस से अब तक 21 जिले प्रभावित हुए हैं। राज्य सरकार ने राज्य भर में मवेशियों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू किया है। फिलहाल दूध उत्पादन और खपत पर कोई असर नहीं पड़ा है।
विभाग ने कहा, “महाराष्ट्र में इस ढेलेदार त्वचा रोग वायरस के प्रभाव से दूध की आपूर्ति पर असर नहीं पड़ा है। सरकार ने राज्य में बूचड़खानों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है।” विभाग के अनुसार, “अवैध तरीके से पशुओं की आवाजाही निषिद्ध है। हालांकि, मांस के लिए मवेशियों के ट्रांसपोर्टेशन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।” पशुपालन मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने कहा, “हमने केवल मवेशियों के प्रमाण पत्र मांगे हैं। प्रमाण पत्र यह सुनिश्चित करने के लिए मांगे हैं कि इन पशुओं का मांस मनुष्यों के लिए उपयुक्त है। हमें लोगों के स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करने की जरूरत है।”
ढेलेदार त्वचा रोग दूषित भोजन और पानी के माध्यम से फैलता है
ढेलेदार त्वचा रोग (एलएसडी) ने जुलाई 2019 में भारत, बांग्लादेश और चीन में प्रवेश किया। ढेलेदार त्वचा रोग (एलएसडी) एक संक्रामक वायरल बीमारी है जो मवेशियों को प्रभावित करती है और बुखार, त्वचा पर गांठ का कारण बनती है और इससे मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग मच्छरों, मक्खियों, जुओं और ततैयों द्वारा मवेशियों के सीधे संपर्क में आने और दूषित भोजन और पानी के माध्यम से फैलता है। 19वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश भारत में वर्ष 2019 में मवेशियों की आबादी 19.25 करोड़ की थी।
महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में ढेलेदार त्वचा रोग के कारण कुल 42 संक्रमित मवेशियों की मौत हो गई है। विभाग के अनुसार रविवार तक जलगांव में 17, अहमदनगर में 13, धुले में 1, अकोला में 1, पुणे में 3, बुलढाणा में 3, अमरावती में 3 और वाशिम में 1 जानवर की मौत हुई है। लंपी का पहला मामला 4 अगस्त को जलगांव जिले के रावेर तालुका के चिनावाल गांव में सामने आया था। यह वायरस सिर्फ गाय और भैंस में ही पाया गया है। जिन पशुओं में रोग के लक्षण नहीं होते हैं, उनके दूध का इस्तेमाल करने से मनुष्यों को कोई खतरा नहीं है। जानवरों की इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है, हालांकि, ऐसे जानवरों का दूध वायरस के कारण प्रभावित हो सकता है। रविवार तक जलगांव, अहमदनगर, अकोला, धुले, पुणे, लातूर, औरंगाबाद, बीड, सतारा, बुलडाना, अमरावती, उस्मानाबाद, कोल्हापुर, सांगली, येओतमल, परभणी, सोलापुर, वाशिम, नासिक और जालना के कुल 280 गांवों में लंपी से संक्रमित मवेशी देखे गए हैं।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सोमवार को राज्य पशुधन विकास विभाग के अधिकारियों से कहा कि मवेशियों में लंपी त्वचा रोग को देखते हुए सतर्कता बरतें और इसे फैलने से रोकने के लिए कदम उठाएं। मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा कि राज्य के अनेक जिलों में गोवंश के पशुओं में यह बीमारी देखी गयी है और आज हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस पर चर्चा हुई। उन्होंने अधिकारियों से लंपी त्वचा रोग पर जागरुकता अभियान चलाने को और लोगों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए अपने कार्य क्षेत्र में मौजूद रहने को कहा।
केंद्र ने सोमवार को कहा कि जुलाई में ढेलेदार त्वचा रोग के फैलने के बाद से 67,000 से अधिक मवेशियों की मौत हो गई है। आठ से अधिक राज्यों में बीमारी के अधिकांश मामले वाले क्षेत्रों में मवेशियों का टीकाकरण करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। पीटीआई-भाषा से बात करते हुए पशुपालन और डेयरी विभाग के सचिव जतिंद्र नाथ स्वैन ने कहा कि इस बीमारी से प्रभावित विभिन्न राज्य मौजूदा वक्त में मवेशियों में ढेलेदार त्वचा रोग (एलएसडी) को नियंत्रित करने के लिए ‘बकरी के चेचक’ के टीके का उपयोग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि अनुसंधान निकाय ICAR के दो संस्थानों द्वारा विकसित एलएसडी के लिए एक नए टीके ‘लंपी-प्रोवैकइंड’ की व्यावसायिक पेशकश में आगे ‘तीन-चार महीने’ का समय लगेगा। ढेलेदार त्वचा रोग मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में फैल गया है। आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कुछ छिटपुट मामले हैं। उन्होंने कहा, ‘‘राजस्थान में प्रतिदिन मरने वालों मवेशियों की संख्या 600-700 है। लेकिन अन्य राज्यों में यह संख्या एक दिन में 100 से भी कम है।’’ उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने राज्यों से टीकाकरण प्रक्रिया में तेजी लाने को कहा है। स्वैन के अनुसार, बकरी चेचक का टीका ‘100 प्रतिशत प्रभावी’ है और पहले से ही 1.5 करोड़ खुराक प्रभावित राज्यों में दी जा चुकी है।
उन्होंने यह भी कहा कि देश में बकरी पॉक्स के टीके की पर्याप्त आपूर्ति है। दो कंपनियां इस वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं और उनके पास एक महीने में टीके की चार करोड़ खुराक बनाने की क्षमता है। कुल मवेशियों की आबादी लगभग 20 करोड़ है। उन्होंने कहा कि अबतक 1.5 करोड़ बकरी पॉक्स की खुराक दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि जहां कोई मामला सामने नहीं आया है, वहां बकरी पॉक्स के टीके की ‘केवल एक मिली की खुराक’ एलएसडी से लड़ने में मदद करने के लिए पर्याप्त है, जहां इस रोग का प्रकोप फैला हुआ है वहां मवेशियों को तीन मिलीलीटर की खुराक दी जा सकती है। नए टीके के संबंध में, स्वैन ने कहा कि ‘लंपी-प्रोवैकइंड’ को व्यावसायिक रूप से उतारने में तीन-चार महीने का समय लगेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘निर्माताओं को नए टीके के व्यावसायिक उत्पादन के लिए भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) से अनुमति लेनी होगी। वाणिज्यिक पेशकश करने में आगे 3-4 महीने का समय लगेगा।’’ दूध उत्पादन पर एलएसडी के प्रभाव के बारे में, गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने कहा कि गुजरात में दूध उत्पादन पर 0.5 प्रतिशत मामूली रूप से प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा कि टीकाकरण प्रक्रिया से गुजरात में स्थिति नियंत्रण में है।
सोढ़ी ने कहा कि अन्य राज्यों में प्रभाव थोड़ा अधिक हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘अमूल सहित संगठित दूध उत्पादकों की खरीद साल भर पहले की तुलना में कम हुई है। लेकिन इसके लिए एलएसडी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। पिछले साल के विपरीत, असंगठित खिलाड़ी, मिठाई निर्माता और होटल आक्रामक रूप से दूध की खरीद कर रहे हैं।’’ मदर डेयरी के प्रबंध निदेशक, मनीष बंदलिश ने कहा, ‘समग्र योजना में उत्पादन पर मामूली असर पड़ा है।’’